Monday 31 August 2020

राजनेता  नौकरशाह भ्रष्टाचार

माननीय मुख्यमंत्री जी का विभाग है ...“आवास व शहरी नियोजन' 3 वर्ष के कार्यकाल में कई विकास प्राधिकरण अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हो गये। आश्चर्य उस दिन हुआ जब अखबार की खबर पढी कि “कानपुर विकास प्राधिकरण" के उपाध्यक्ष का पद “ सवा करोड़ ” में “ नीलाम” हो रहा है। यह वक्तव्य किसी और का नही अपितु स्वंय सरकार का है। जिसके मुखिया स्वंय योगी आदित्यनाथ है और यह विभाग भी उन्ही के पास है। जरा सोचिये जब उपाध्यक्ष का पद ही " नीलाम” होने लगेगा तो फिर स्वंय विकास प्राधिकरण क्या होगा ? और बड़ी बात यह है कि यह व्यवस्था... ब्युरोक्रेट यानि आई०ए०एस० द्धारा विकृत की जा रही है। यदि इस चरित्र की ब्यूराक्रेसी वर्तमान डेमोक्रेसी मे विद्यमान है और सत्तासीन व्यक्ति बार बार अपने उज्जवल और निष्कलंक होने का स्वंय प्रमाण पत्र देने व बताने लगे तो... ऐसी स्थिति में तथाकथित राजनेता राज्य की "कल्याणकारी भावना” का दोहन करने के अतिरिक्त ओर कछ नही करते होगें। राज्य में बढ़ती साक्षरता व घटती शिक्षा का अंतर इतना अधिक हो गया जिसके कारण हमारी संस्कृति व मूल्य सत्तालोलपता व अन्य भष्ट नौकरशाही के नीचे या ते दम तोड़ चंके है या फिर इंटेसिव केयर यूनिट में है। मुझे नही मालूम कि मेरी मनःस्थिति इतनी नकारात्मक हो गयी है ? घणा होने लगी है वर्तमान राज्य व्यवस्था से । जिस राज्य की संस्कृति व मूल्यो का क्षरण हो रहा हो .... क्या उस राज्य में विकास की संभावना शेष है? जहाँ एक तरफभूख और थकान... इस कदर मन और दिमाग पर हावी हो जाये... कि उन 16 विकल व्यक्तियों को ट्रेन की आवाज भी सुनाई दे और वह सभी निर्जन रक्तपिपासु भूमि पर काल के गाल में समा जाने को विवश हो जाये और दूसरी तरफ सत्ता जश्न मना रही हो। ऐसे कल्याणकारी राज्य में सुखद व सकारात्मक विचारों की उत्पत्ति कैसे हो ? यह चिंता का विषय है। भारतभूमि देव भूमि मानी जाती है परंतु वर्तमान में “देवपुत्र" ही दानवीवृत्ति के द्योतक हो जाये तो क्या होगा ? मनुष्यता की रक्षा कैसे होगी? छद्म भेषधारी राजनेता वा नौकर शाही का सामुहिक संगठन द्धारा कृत भ्रष्टाचार अनावार युक्ति वृद्धि का विश्लेषण कैसे किया जाये? इसका एक मात्र उपाय है संस्कृति व मुल्य गर्भित शिक्षा का विकास ! भ्रष्टाचार सत्ता का कड़वा सच हमेशा जनहित के विपरीत में कार्यरत रहता है। क्योकि सत्ता अपनी दाँयी तरफ" अंहकार” व अपनी बाँये तरफ" लोभ" के विकार को बैठा कर रखती है। फिर सत्ता पर आसीन होने वाला कोई महात्मा हो या फिर कोई जन सामान्य.... यह सार्वभौमिक सत्य तो सब पर लागू होता है। यह अलग बात है कि यह प्रतिशत महात्मा व जन सामान्य में तुलनात्मक अध्ययन में विकारों का कम या अधिकांश होना सामान्य सी बात है।आज जिन सामान्य पस्थितियो में सत्तासीन योगी आदित्यनाथ श्रेष्ठ... ईमानदार... व निर्मल वृत्ति की स्वच्छ उज्जवल धवल व्यक्तित्व पर भी सत्ता के विकृत विकारो के काले धब्बे स्पष्ट दिखायी पड़तें है।...इन्हे हम तथ्यात्मक रूप से स्पष्ट कर रहे है।


Monday 17 August 2020

भाषा हीन दारिद्र भाषा वाला लोकतंत्र

भाषा हीन दारिद्र भाषा वाला लोकतंत्र



यह कहने और सुनने में कोई आपत्ति नही होनी चाहिये कि लोकतंत्र द्धारा अर्जित भाषा का लोप हो रहा है। भाषा का दारिद्रपन अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच कर नग्न नृत्य कर रहा है। टी0वी0 पर एंकरो की भाषा, सदन की भाषा, राजनेताओं की भाषा, सुनने से लगता है कि           अब तो यही भाषा आॅफिशियल होती जा रही है। मुझे लगता है अब तक लोगो की पहचान उसकी भाषा, वाणी से होती थी। उसके चरित्र व आचरण का पैमाना भाषा ही होती थी। विकार ग्रस्त भाषा ने मानव स्वाभाव का चरित्र ही बदल दिया है। नैतिक बल कर पराभव हुआ है। वहीं दूसरी ओर भाषा ने अपने स्वरूप को भी बदला है। नई नई भाषाओं का जन्म हुआ है। उदाहरण के लिये देह की भाषा जिसे अगं्रेजी में ‘‘ बाॅडी लैंग्वेज ’’ के नाम से जानते है। दूसरा है कूटनीति की भाषा जिससे दो देशो के मध्य युद्ध जीते जाते हैं। पक्ष की भाषा, राष्ट्र की भाषा- यहाँ तक तो ठीक है किंतु इसका परिणाम कुछ इस तरह हो रहा है। जैसे विपक्ष के सवालो का सम्बोधन ‘‘ राष्ट्रदोह ’’ के नाम से होने लगा है क्यांेंकि विपक्ष यदि सवाल खड़े करता है तो विपक्ष राष्ट्रदोही हो जाता है। क्योंकि विपक्ष की भाषा को राष्ट्रद्रोह की भाषा से परिभाषित किया जाने लगा है।
इस तरह 20 वीं सदी में भाषा में नफरत के भाव का उदय हुआ। यह नफरत का भाव देशद्रोह में बदल गया। नही तो सरकार से सवाल करने पर कोई कैसे राष्ट्रदोही हो सकता है??? सरकार भी ऐसी भाषा से डरती है। तभी तो सवाल उठाने पर सरकार शक्ति का प्रयोग करती है। पुलिस जेल तक की व्यवस्था करती है।
प्रधानमंत्री से सवाल पूछने पर पूछने वालो के लिये एक नये शब्द ‘‘ अरबन नक्सल ’’ का आर्विभाव हुआ है। अब प्रधानमंत्री से सवाल पूछने पर ‘‘ अरबन नक्सल ’’ जैसी संवैधानिक धाराओं का उपयोग होने लगा है। फिर भी हम सोच रहे थे कि राष्ट्र की भाषा क्या है ??? तो इसकी व्याख्या तथ्यो से परे जो कुतर्क की भाषा है वही राष्ट्र की भाषा बन गयी।           यहाँ यह जानना आवश्यक हो जाता है कि क्या सरकार व देश एक ही ‘‘शब्द’’ है ??? नही!!! दोनो में अंतर है। यदि सरकार से सवाल किया जाये तो देशद्रोह कैसे हो सकता है ??? किंतु सच में है तो यही। इसे कहते है बौद्धिक दारिद्रपन व भाषा का दारिद्र जिस राष्ट्र की भाषा दरिद्र हो जाये वह राष्ट्र भी दारिद्र हो जाता है। फिर राष्ट्र हित या राष्ट्र समृद्धि की भाषा क्या है?? राजनीतिक वफादारी ही राष्ट्रहित बन जाये तों इसे क्या कहा जाये ??? सरकारे जो भी राष्ट्र हित या जिस भाषा में बोल दे वही राष्ट्र हित या राष्ट्र की भाषा के रूप में पहचानी जायेगी। क्योंकि विपक्ष के सवाल तो राष्ट्रदोह की भाषा होती चली जा रही है। इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि अनुकूल वचन देश हित व प्रतिकुल वाणी देशद्रोह ???
अभी तो भाषा की मर्यादा समाप्त हो गयी है बाद में तो भाषा ही मौन हो जायेगी या समाप्त हो जायेगी। वर्तमान में इसी कारण कटुता के भाव बढ़ रहे है। चिंता इस बात कि है कि भाषा की ताकत का नया आाधार क्या होगा ??? वर्तमान में दारिद्रयुक्त भाषा लोकतंत्र को प्राणहीन कर रही है। भाषा विलोप के साथ लोकतंत्र का विलोप निश्चित है यदि समय रहते हम इसे सुधार नही पाये तो फिर क्या होगा वह ईश्वर ही जाने !!!


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अमेरिकी अखबार के खुलासे पर बोले राहुल गांधी- फेसबुक, व्हॉट्सएप पर BJP-RSS का नियंत्रण, भाजपा का पलटवार








 



















नई दिल्ली, एजेंसियां। अमेरिकी मीडिया वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा भारत में सत्तारूढ़ दल के नेताओं पर घृणा भाषण संबंधी नियमों को लागू करने में लापरवाही का दावा किये जाने के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गये। वहीं इस मामले में अब सोशल मीडिया साइट फेसबुक का बयान भी सामने आया है। फेसबुक ने कहा कि वह ऐसे भाषण और कंटेंट को प्रतिबंधित रोक लगाता है जो हिंसा को उकसाता है। नीतियों को वैश्विक स्तर पर लागू करते समय यह नहीं देखा जाता कि पोस्ट किसी राजनीतिक स्थिति या पार्टी से संबंधित है। हालांकि, हम जानते हैं कि इसपर रोक लगाने के लिए अभी काफी कुछ करना है। निष्पक्षता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए इस प्रक्रिया का नियमित ऑडिट होता है।


इस मामले में अब राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने भाजपा पर निशाना साधा है। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा है कि भारत के ज़्यादातर मीडिया चैनल के बाद अब सोशल मीडिया की बारी है। भारतीय जनता पार्टी नफरत और दुष्प्रचार फैलाने के लिये हर तरह के हथकंडे का इस्तेमाल करती थी और अभी भी कर रही है। फेसबुक जो आम जनमानस की अभिव्यक्ति का एक सरल माध्यम है उसका भी इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भ्रामक जानकारी और नफरत फैलाने के लिए किया। इतना ही नहीं फेसबुक कोई कार्रवाई न कर पाए इसके लिए भाजपा ने फेसबुक के आधिकारियों से सांठगांठ भी की ताकि सोशल मीडिया पर नियंत्रण बना रहे।






कांग्रेस ने की जेपीसी से जांच कराने की मांग


कांग्रेस ने मामले में की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने की मांग की है। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा कि जेपीसी को जांच करनी चाहिए कि फेसबुक और व्हाट्सएप चुनावों में भाजपा की मदद करने और नफरत का माहौल बनाने के लिए कैसे काम कर रहे हैं।


क्या है मामला


वाल स्ट्रीट जर्नल के आर्टिकल में फेसबुक पर आरोप लगाया गया है कि वह भारत में सत्ताधारी दल भाजपा के नेताओं के प्रति उदार है और उनकी हेट स्पीच को दंडित नहीं किया जाता है। सोशल मीडिया के जरिये रोज सरकार पर निशाना साधने वाले राहुल गांधी ने इस मौके को लपक लिया और इसे एक सुबूत के रूप में पेश करने की कोशिश की।कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी राहुल के साथ खड़े हुए और सूचना प्रौद्योगिकी संसदीय समिति के अध्यक्ष के तौर पर चेतावनी भी दे दी। उन्होंने कहा कि समिति फेसबुक को बुलाकर इस रिपोर्ट पर स्थिति जानना चाहेगी। रविशंकर प्रसाद ने परोक्ष रूप से राहुल गांधी की क्षमता पर सवाल खड़ा करते हुए इतिहास की भी याद दिलाई। उन्होंने कहा, 'आप तो कैंब्रिज एनालिटिका और फेसबुक के आंकड़ों के सहारे चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश में रंगे हाथों पकड़ो जा चुके हैं और हम पर तोहमत लगाने की हिम्मत दिखा रहे हैं।'



हेट स्पीच के दायरे में सोनिया भी, फेसबुक पर हुआ था लाइव : भाजपा


भाजपा सोशल मीडिया प्रभारी अमित मालवीय ने विस्तृत आंकड़ों के साथ राहुल गांधी के आरोपों को नकारा। उन्होंने कहा, 2019 चुनाव से पहले फेसबुक ने भाजपा समर्थकों के लगभग 700 पेज डिलीट किए थे. जबकि हर पेज के लाखों फालोवर्स थे। भाजपा सूत्रों के अनुसार इनमें वी सपोर्ट इंडिया, मेरा भारत महान, हिंदुस्तानी सेना, यूथ फार नमो, कहो दिल से तथा नरेंद्र मोदी फिर से-जैसे कई पेज थे। मालवीय ने हेट स्पीच के दायरे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी खड़ा किया और कहा कि 'उनका विभेदकारी भाषण फेसबुक पर लाइव चला था और उसके बाद दिल्ली में दंगे भी हुए और कई की जानें भी गई। सोनिया गांधी भी बराबर की जिम्मेदार हैं।'












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